अँधेरे का सच

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मैं अचानक लाइब्रेरी की सीढ़ियों पर ठिठक गया. मैंने देखा, मेरे साथ साथ धूप भी उतरने की तैयारी में थी. थोड़ी देर और यह धूप यूँ ही यहाँ रुकी रहेगी और फिर लाइब्रेरी की खिड़कियों और मेहराबों और झरोखों और बुर्जियों से होती हुई उस शाम को जगह देने लगेगी, जो हमेशा धूप के जाने की प्रतीक्षा में दिन के मुहाने पर खड़ी रहती है. भावना मेरे पीछे पीछे आई. हमेशा की तरह इस बार भी वह जल्दी में थी, हालांकि वह स्वयं भी नहीं जानती थी कि इतनी जल्दी उसे आखिर जाना कहाँ था ! पर  यह कोई नई