याद करते हुए शिवानी का मन अतीत के गलियारों में पहुंच गया। कितनी चंचल अल्हड़ और बातूनी हुआ करती थी वो। आज से बिल्कुल अलग। घर में सबकी लाडली हरदम चिड़िया की तरह चहकती रहती और सबका मन अपनी बातों से लगाए रखती। खूबसूरत भी कम ना थी लेकिन लड़कियों जैसी उसमें कोई बात ना। सजने सवरने से दूर हरदम खेल में ध्यान। लड़कों से कहीं बढ़कर उसके शरारतें होती थी। बेटियां कितनी भी प्यारी हो लेकिन माता पिता को अपने कलेजे पर पत्थर रख उसे दूसरे घर भेजना ही होता है। शिवानी की पढ़ाई पूरी होते ही शिवानी माता