अबोध

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उसकी आँखो में अजीब सी उदासी थी, मानों सब कुछ खो चुकी हो। उसकी उम्र मुश्किल से सोलह या सतरह साल की होगी। मेरी बुढ़ी आँखे उसकी मासूम-सलोने मुखड़े से लग गयी थी। मुझे घबराहट होने लगी थी, ना जाने किसकी बेटी है जो सांझ ढले ट्रेन में चढकर कहीं जा रही है? क्या इसके माता-पिता को इस बात की जानकारी है? ये सब सोचकर मेरा कलेजा कंपकंपा उठा था। मैने अपनी नौकरी में छत्तीस साल बच्चों के बीच बिताए थे। शक्ल देखकर मैं किसी बच्चे की तकलीफ जान जाता था। ये भी तो बच्ची ही थी। मेरा दिल शोर