अंक - पंद्रह/१५डॉक्टर अविनाश का उनकी प्रतिष्ठा के विरुद्ध निराधार औैर विचार-विमर्श के विरोधाभास औैर एकदम बेसिरपैर जैसे निवेदन से शेखर के भीतर के निष्क्रिय शंकास्पद विचारों ने शेषनाग के जैसे फन फैलाए। औैर डॉक्टर अविनाश की ओर से अचानक ही कोर्इ सुनियोजित षड़यंत्र का मायाजाल बिछाया हो, ऐसा कहकर को भीतर से आभास होने लगा तो अपने असली मिजाज में आते हुए बोला,'सॉरी सर लेकिन अगर आप अभी किसी मज़ाक करने के मुड़ मेें हो तो प्लीज़ स्टॉप इट। कहां तो कितने दिन रात की बहुत सारी असहनीय मानसिक अत्याचारों से मुश्किल से गुजरकर इस स्टेज तक आए हैं।