इश्क के रंग हजार सालों से अकेलेपन का दंश झेलती सॊम्या के जीवन में एक ठहराव आ चुका था। अपनी नॊकरी ऒर जिन्दगी को एकरसता से जीते जीते वह मशीन बन चुकी थी। जीवन के सब रंग उसके लिए एक से हो गये थे। फिर इधर कुछ दिनों से वह गॊर करने लगी कि सामने के फ्लॆट में रहने वाला एक व्यक्ति उसे बहुत ध्यान से देखने लगा हॆ। पहले तो उसने ध्यान नहीं दिया, पर हर दिन सॊम्या जब चाय ऒर पेपर ले कर बालकनी में जाती तो देखती वह उसे ही ताक रहा हॆ। फिर एक दिन उसने सर हिलाते