निरपराध तो नही थी द्रोपदी भी स्वर्गाधिपति का दरबार , दरबार में आज एक विचित्र सी स्थिति देखने को मिल रही है। सारे दरबारी सन हैं क्योंकि ऐसा ना कभी किसी ने सोचा था और ना किसी ने कोई कल्पना की थी । महाभारत काल से इस कलयुग तक ऐसा क्या था कि यह बात कभी सामने नहीं आ पाई । आज पहली बार द्रोपदी ने युधिष्ठिर की गिरेबान पकड़कर स्वर्गाधिपति के दरबार में लाकर सबके सामने स्वर्गाधिपति से कहा - यह मेरा दोषी है इसको कोई अधिकार नहीं था भरे दरबार में चौसर के दांव में मुझे दाव पर