उजाले की ओर - 23

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उजाले की ओर --------------------- आ. एवं स्नेही मित्रों ! सादर ,सस्नेह सुप्रभात जीवन की धमाचौकड़ी पूरे जीवन भर चलती रहती है|हम नाचते रहते हैं कठपुतली के समान इधर से उधर ,उधर से इधर |जीवन में कुछ न कुछ ऊँचा-नीचा होता ही रहता है |हम कब कुछ ग़लत कर बैठते हैं हमें इसका आभास भी नहीं होता,होता तब है जब हम अपने किए हुए का परिणाम देखते हैं |स्वाभाविक है, बबूल का पेड़ बोने से हमें स्वादिष्ट आम का आनन्द तो प्राप्त हो नहीं सकता किन्तु हमें यह पता ही नहीं चलता कि हमने आखिर यह बबूल का पेड़