मृत्यु का मध्यांतर - 6 - अंतिम भाग

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अंतिम अंक - छठा/६'आदित्य, आदित्य नहीं है इसमें आदि। सबकुछ अकेले अकेले ही करना है? प्रेम भी अकेले औैर पुण्य भी अकेले ही? कही तो मुझे तुम्हारा साथी बनने दो न आदि।'इतना बोलते ही इशिता आदित्य के गले लगकर फूटफूट कर रोने लगी और पहली बार आदित्य के आंसुओं का मज़बूत बांध भी टूट गया।अब इशिता ने अपने मनोबल को वज्र जैसा कठोर कर दिया था। आदित्य के इतने सालों की एकलव्य जैसे एकतरफा आराधना की फलश्रुति रूप में सिर्फ़ इशिता के आंसु पर्याप्त नहीं थे। चेहरा पोंछ ते हुए इशिताने पूछा,'आदि इतना किया है तो अब एक वचन दो