अज्ञेय के काव्य में औपन्यासिकता

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अज्ञेय के काव्य में औपन्यासिकता रामगोपाल भावुक मोबा. 09425715707 अज्ञेय जी की कविता ’’यह दीप अकेला’’ में एक अकेला दीपक अन्धकार को दूर करने के लिये सघर्षरत है । उसी तरह हमें भी निन्दा ,अपमान और अवज्ञा जैसे अन्धकार को दूर करने के लिये सघर्ष करना चाहिये । इस कविता में कवि ने अपने द्रढ़ आत्म-विश्वास से ऊपर उठने की भावना व्यक्त की है । अकेला दीप अर्थात अकेला कवि अपनी लघुता से भयभीत होकर कॉपने वाला नहीं है ,उसे पवन रूपी विरोधियों का भय नहीं हैं। उसमें विरोधियों से लड़ने की सामर्थ्य