एक दुनिया अजनबी 34- इसी मृदुला को ढूँढ़ते हुए प्रखर उस स्थान पर पहुँचा था जहाँ उसके फ़रिश्तों ने भी कभी जाने की कल्पना न की होगी | कितना चिढ़ता था वह मृदुला से किन्तु जब ज़रूरत पड़ी तो ऐसे स्थान पर भी पहुँचा ही न ! आदमी बड़ा स्वार्थी होता है, शायद बिना स्वार्थ के दुनिया चलती भी नहीं ! कल्पना कहाँ होती है? वास्तविकता की कठोर धरती कहाँ-कहाँ खींचकर ले जाती है मनुष्य को ! समय के बहाव के अनुसार आदमी को बहना ही पड़ता है | कोई चारा ही जो नहीं | "कभी-कभी लगता है अगर ब्रह्मा जिनके हम केवल नाम से परिचित हैं,