लॉकडाउन डेज़ - कामना सिंह

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सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य समाज में सबके साथ घुल मिल कर रहने का आदि है। ऐसे में यह कल्पना करना भी मुश्किल हो जाता है कि हम जहाँ पर हों, वहाँ पर दूर दूर तक हमसे बात करने..बोलने बतियाने..गुफ्तगू करने वाला कोई ना हो। किसी इनसान को देखने तक को हमारी आँखें तरस जाएँ और हम बस एकालाप करते हुए हर समय गहन सोच में डूब, अपनी बीत चुकी ज़िन्दगी को याद एवं आने वाले भयावह दिनों की कल्पना मात्र से ही डर कर सिहरते रहें। सोते जागते हर समय बस यही दुआ करते रहें कि.. काश..कोई हमसे