हमारे एक मित्र है , मोहन । बेचारे... कई वर्षों से कुंवारे होने का दर्द झेल रहे थे । आखिर काफी प्रयास और भागदौड़ के बाद एक कन्या ने उन्हें पसन्द कर ही लिया । बात आगे बढ़ी तो स्वाभाविक ही था कि हिन्दी फिल्मों की तरह विवाह पर आकर समाप्त होती । दोनों परिवारों की रज़ामन्दी के साथ हमारे मोहन भाई की विवाह की तिथि निश्चित हो गई । बाजे वाले, वाहन वाले के साथ ही साथ हाल और हलवाई आदि की पूर्व व्यवस्था में दोनों ही पक्ष अपनी -अपनी कार्यवाहियों में जुट गए । सब कुछ