इंसानियत - एक धर्म - 14

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अस्पताल से कचहरी की तरफ बढ़ रही राखी के मन में विचित्र सा अंतर्द्वंद चल रहा था । बेचैनी स्पष्ट रूप से उसके चेहरे पर झलक रही थी । ‘ पता नहीं क्या होगा असलम का ? ‘ यही विचार उसे बेचैन किये हुए थी । तेज गति से चल रही ऑटो भी उसे काफी धीमी से चलती हुई प्रतीत हो रही थी । वह जल्द से जल्द राजन अंकल से मिलकर उनसे असलम की रिहाई सुनिश्चित कर लेना चाहती थी । लगभग पंद्रह मिनट बाद ही वह वकिल राजन पंडित के दफ्तर में बैठ उनसे एक ही बात का