प्रेमम पिंजरम

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मौसम की आवारगी में खोई हू और आज भी मै डायरी में तुम्हारे आने की उम्मीद में लिख रही हूं , यह डायरी जिसमें तुमसे जुड़ी हर बात लिखते ही जा रही , मुझे यकीन है कि तुम आओगे जरूर , 1946 की यह कहानी हमे आज के दौर से नब्बे साल पहले के प्रेम व्यवहार को समझने के लिए लेकर चलती है, उस सफर में जहां प्रेम के अपने स्वच्छंद मायने थे और जहां प्रेम में पवित्रता हुआ करती थी, आज के मीम और सोशल मीडिया से बेहद दूर जब खातों की जुबान से प्यार की बातें लिखी होती थी।।।।।।5 दिसंबर