एक कर्मयोद्धा सन्यासी उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध का काल भारत दासता में जकड़ा हुआ , गरीबी राजा-रजवाड़ों और संप्रदायों में बिखरा हुआ दिखता था । इस काल में विदेशी ताकतें सामाजिक आंदोलन और समाज सुधार के नाम पर सीधे भारतीय दर्शन को आघात पहुॅंचा रही थी । गीता के कथनानुसार ही यदा यदा धर्मस्यहलार्नि भवति भारतः अभ्युत्थानम्धर्मस्य विनाशाय च दुस्कृताम् को चरितार्थ करते हुए कलकत्ता के सिमुलिया नामक मोहल्ले में माता भुवनेश्वरी देवी और पिता विश्वनाथ दत्त के घर 12 जनवरी 1863 को उनका लाड़ला