रत्नावली 11

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रत्नावली रामगोपाल भावुक ग्यारह जीवन में कुछ काम खेल की तरह आनन्द देते हैं। यही सोचकर रत्नावली खेल जैसा आनन्द पठन-पाठन में लेने लगी थीं। शास्त्री जी के प्रथम शिष्य गणपति को पढ़ाने का दायित्व अपने हाथ में लेने से उन्हें आनन्द की अनुभूति हो रही थी। उसके पिता विधवत् अध्ययन जारी कराने के लिए चक्कर लगा रहे थे। कुछ दिनों से रत्नावली इस उधेड़बुन में रहने लगी कि अध्ययन किस प्रकार शुरू किया जाये ? पुरानी परम्परा और नये परिवेश में द्वन्द्व छिड़ गया था। लेकिन सबसे पहली बात थी,