रत्नावली रामगोपाल भावुक छह रत्नावली का तारापति के कारण ही कुछ मन लग गया था। वह कुछ न कुछ बोलने लगा था। घर के सभी लोग उसे खिलाने का आनन्द लिया करते। नानाजी उसे गाँव में लिए फिरते। अब रत्ना ने अपने जीवन की सारी आशायें पुत्र पर टिका दी थीं। और वह सोचने लगी थी कि उसका समुचित विकास मामा के घर में नहीं, अपने ही घर में हो सकता है। आज यह छोटा है, कल बड़ा होगा। भैया-भाभी अभी अपनापन दिखा रहें हैं, कल के बारे में कौन जाने किसका व्यवहार कैसा