राग का अंतर्राग - 3 - अंतिम भाग

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अमिता नीरव 3 वृंदा एकदम खिन्न हो गई थी। वह नहीं समझ पा रही थी कि आखिर वह क्या कहे, करे? उसे यह दुख भी होने लगा था कि आखिर उसका अधूरापन शुभ के सामने भी जाहिर हो ही गया। लेकिन वह क्या करे.... कहाँ से करे खुद को पूरा....? क्या अभाव है, वह उसे जानें तो पहले.... वह खुद ही अपने सामने पहेली बनी हुई है। शुभ के सामने क्या सुलझाए? लेकिन आज उसे यह भी महसूस हुआ कि बात बहुत गंभीर है। जब ठीक होगा, तब होगा, तब तक क्या ऐसे ही अधूरेपन के साथ जिएंगे दोनों? शुभ