एक तुलसी पत्नी का ताना सुनकर घर छोड़कर निकल पड़े। घर में उनकी पत्नी रत्नावली सारी रात दरवाजे पर खड़ी-खड़ी उनके लौटने की प्रतीक्षा करती रही। वे सोच रही थीं-अब मैं उनका मुस्कराकर हर दिन की तरह स्वागत करुँगी। यह सोचकर वे मुस्कराकर देखती हैं पर उनकी मुस्कराहट शंका के ऑँगन में विलीन हो जाती है। सुबह होने को है। वे वापस नहीं लौटे। पति-पत्नी के बीच तानों का लेन-देन तो चलता ही रहता है। तुम भी तो अपनी साहित्यिक भाषा में मुझसे क्या-क्या नहीं कहते थे। मैंने बात कुछ इसी तरह कह दी तो रूठ कर