क्लीनचिट - 14

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अंक - चौदह/१४सुबह ६:१० के आसपास अचानक शेखर की आंखें खुलते ही सबसे पहले नज़र आलोक के बेड पर जाते ही दिल बैठ गया। आलोक बेड पर नहीं था इसलिए एकदम से बेड पर से उठकर आसपास नज़र करी लेकिन दिखा नहीं इसलिए बाल्कनी की ओर जाकर नजर डाली तो बाल्कनी में लॉन्ग चेयर पर बैठकर दोनों पैर लंबे करके बाल्कनी की किनारे पर टिकाकर आंखें बंद करके बैठे हुए आलोक को देखकर शेखर की जान मेें जान आई।एक अनजाने डर के साथ धीरे से आलोक के पास जाकर मुश्किल से बोला,'गुड मॉर्निंग, क्यूं इतना जल्दी जाग गया, आर यू