बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 29

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भाग - २९ ' मैं जानती हूँ कि, तुम मेरा ख्वाब पूरा कराने में मेरा साथ जरूर दोगे । एक तुम ही हो जो अब मेरे जीवन में मेरे ख्वाबों को सजाओगे-संवारोगे। सुनो इसी से जुड़ी एक और बात कहना चाहती हूं।' 'क्या, बताओ।' 'देखो तुम काशी में कह रहे थे कि, अपने काम-धाम के हिसाब से लखनऊ से ज्यादा मुफीद काशी है।' ' हाँ, कहा था।' 'तो मैंने यह तय किया है कि, अब हम यहां से काशी ही जाकर बसेंगे। वहीं नए सिरे से अपना काम-धाम शुरू करेंगे, वहीं शादी करके...।' मैं इतना कहकर चुप हो गई। बात