तुम्हारे दिल में मैं हूं? - 15

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अध्याय 15 सुबह 3:30 बजे के करीब ताई अपने दो लठैत के साथ कार से आकर उतरी। उन लोगों का इंतजार करते हुए रितिका जाग रही थी, जल्दी जल्दी उठी। "आओ.. दीदी बरामदे में आकर बैठो...." "बैठने की फुर्सत नहीं है..…जल्दी से बच्ची को भेज दे... हमें जाना है..." ताई बहुत नम्रता से बोलती हुई जल्दी में थी। घर के अंदर नहीं आई, घर के बाहर ही खड़ी हुई थी। "ठीक है दीदी.... अभी बुला कर ला रही हूं।" रितिका अंदर आई। हल्की रोशनी थी। मिट्टी के तेल का दीया जल रहा था। राकेश खर्राटे भर कर सो रहे थे।