झंझावात में चिड़िया - 18

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आख़िर ये हम सब की ज़िंदगी है। हम सब कोई निसर्ग की बनाई कठपुतलियां नहीं हैं कि हर सुबह सूरज के उजाले के साथ जागेंगे और शाम को सूरज के क्षितिज पर गिरने के बाद फ़िर से एक लंबी रात में बेसुध होकर पड़ जायेंगे। हमें सपने देखने का काम भी करना है और उन्हें पूरा करने का भी। वर्ष दो हज़ार पंद्रह आते आते दीपिका एक सफ़ल, सजग, संपन्न और सुलझी हुई शख्सियत बन चुकी थीं। उन्हें बखूबी याद था कि वो चाहे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र विषय में अपनी डिग्री पूरी नहीं कर सकी