१८. समय चक्र समय का चक्र बे-फिक्र होकर चलता रहता है, निरपेक्ष भाव से. न जल्दी, न विलम्ब से. पर वह तो हम अपने-अपने स्वार्थों के वशीभूत हैं कि या तो उसके शीघ्र आने की कामना करते हुए आतुर हुए जाते हैं, अथवा उसे अपनी कुछ जटिलताओं के वशीभूत लम्बित रखना चाहते हैं. कभी-कभी आरिणी को लगता कि कुछ जल्दी तो नहीं हो गया सब कुछ विवाह शब्द अपने आप में ही कितना वजनदार शब्द है. आकाश में उडती लड़की के पंख कतर जमीन पर लाने की क्षमता जो रखता है लेकिन वहीं प्रेम की ताकत भी तो है .बिना