कालप्रियनाथ के मन्दिर के शिलालेखों का निहितार्थ इतिहासकारों का कहना है कि यह नगरी ईसा की पहली शताब्दी से आठवीं शताब्दी तक फली-फूली है । (पद्मावती - डॉं0 मोहनलाल शर्मा , पृष्ठ-66-5.6 मुस्लिम मकबरे) यहॉँ नागों का शासन रहा है। धूमेश्वर का मंदिर इस क्षेत्र में आज भी तीर्थ-स्थल बना हुआ है। आज भी प्रति सोमवार को यहाँ मेला लगता है। इस मंदिर का पुनर्निर्माण ओरछा के राजा वीरसिंह जूदेव ने करवाया था । भवभूति की ‘मालती माधवम्’एवं महावीर चरितम् तथा उत्तर रामचरितम् अर्थात् उनकी तीनों ही कृतियों में कालप्रियनाथ के यात्रा उत्सव के समय उनके नाटकों का मंचन,