”स्मृति के झरोखे से-बम्बई“ समय की गति, प्रकृति के नियम तथा जीवन के संघर्ष मे, नियति के अनौखे खेल है। इनसे कोई अछूता नही रहा हैं। प्रत्येक प्राणी को इनकी परिधि में चलना ही पङता है। इन्ही चिंतनो मे डूबा, मैं अपने मन को समुझा ही रहा था कि मोबाईल की घन्टी ने आवाज दी। चालू करने पर बम्बई के समधी श्री जनक लाल जी की जय राम जी मिली। मन प्रसन्न हो गया। खुशी-आनन्दी के दोैर के बाद बारह सितम्बर 2010 ई0 का आमंत्रण आग्रह मिला। हमारे बडे दामाद बलराम की प्रिय पुत्री की गोद भराई का कार्यक्रम निश्चित