विनोद स्नानादि से निबट कर हॉल में पहुंचा तब तक घडी की सुई दस बजे दिखा रही थी । काफी देर तक बडबडाने के बाद विनोद की माँ खामोश हुयी थीं और कल्पना के बार बार आग्रह करने पर दोनों अभी अभी नाश्ता करके बैठे थे । विनोद कोे देखते ही उनके चेहरे पर नाराजगी के भाव गहरे हो गए थे । विनोद के लिए व्यंग्य के बाण हाजीर थे ” तो सुबह हो गयी बेटा ? ”अब विनोद क्या जवाब देता ? किसी भी हाल में बड़ों का सम्मान करना उसका धर्म जो था । चेहरे पर मुस्कराहट लाते