आजादी - 14

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मन ही मन लगभग अपने आपको धिक्कारता हुआ राहुल उन तीनों के साथ चला जा रहा था । तीनों कुलांचे भरते आगे निकल जाते जबकि राहुल पीछे ही रह जाता । एक तो वह इतना ज्यादा पैदल चलने का अभ्यस्त नहीं था । ऊपर से वह रात भी काफी पैदल चलकर थका हुआ था ।थोड़ी ही देर में चारों शहर के दूसरे छोर पर बाहरी हिस्से में पहुँच गए थे । उस बुढिया की झोपड़ी भी बाहरी हिस्से में ही थी लेकिन यह लोग उसीके समानांतर दुसरी तरफ जा पहुंचे थे । यहाँ आस पास निर्जन इलाका था । बड़े