कहानी-7- ’’ ये दुनिया है......मित्र ! ’’ एक लम्बे अन्तराल के पश्चात् आज अकस्मात् कुसुम का फोन आया था, अतः मुझे कुछ क्षण अवश्य लगे कुसुम को पहचानने में। किन्तु जब पहचान गयी तो कुसुम से ऐसे अपनत्व से बातंे होने लगीं जैसे हमारे बीच पन्द्रह वर्षों का अन्तराल ही न आया हो। मंै कुसुम से अब भी उसी बेफि़क्री व बेपरवाही व मस्ती के अन्दाज में बातें करना चाह रही थी जैसे हम वही पहले वाली युवा दिनों की स्कूल की सहेलियाँ हों तथा बातें करते समय फिर से वही बेसिरपैर की-सी बेवकूफियों वाली बातें करेंगी जिनका यर्थाथ से