पुस्तक समीक्षा ‘मंथन -शिव बरुआ

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पुस्तक समीक्षा आंचलिक जिन्दगी का रोचक ‘मंथन शिव बरुआ बरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार ग्वालियर रामगोपाल भावुक ‘डबरा’ भवभति नगर का उपन्यास ‘मंथन’उनकी रचना धर्मिता के उठान की कहानी भी है। अंचल की अधकचरी जिन्दगी के बीच जब कोई व्यक्ैित बहैसियत लेखक के जीवित रहता है तो वह साहित्यिक साधु होता है। भावुक का भाषागत पक्ष इसका साक्षी है। मंथन आंचलिक जिन्दगी की उन समस्याओं को अंत तक मथता है जो ग्राम के स्तर पर शीत युद्ध की तरह उभरकर शांत नहीं होती हैं। मंथन की पृष्ठभूमि में गांव की राजनीति प्रमुख है। रामगोपाल भावुक एक ऐसे गांव के दर्शक हैं