तीसरे लोग - 13

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13. स्मारक और फाल्गुनी जिंदगी की कशमकश से उठ चुके थे | अब उनके पास जीने का एक उद्देश्य था। नि: स्वार्थ भाव से सेवा, सिर्फ सेवा। तभी तो दोनों सोच-समझकर अस्पताल का नामकरण किया 'अर्पण ' | बहु का सम्पूर्ण, उसकी निष्ठां और पतिपरायणता देखकर उसके सास-ससुर उसे रोकने का साहस न जुटा सके और श्व्शुर-ग्रह की तमाम भौतिक सुख-सुविधाओं को तिलांजलि देकर वह अपने सहयात्री संग नर्मदा नदी के किनारे बसे इस अस्पताल में चली आई। दस डॉक्टर नियुक्त किये गए थे, जिनमें से दो विदेशी थे, जो अपनी जमीन, अपने लोग और सांसारिक सुख-सुविधाओं को त्यागकर नि: