न वो हारा न मै ..

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वो बगावत करने पर उतारू है । उसने हिन्दी सहित्य के आदर्शवादी नायकों की तरह स्वयम् को प्रस्तुत करने से इंकार कर दिया । वो आदर्शों को नये और अपने ही तरीकों से परिभाषित करना चाहता है । उसे आदर्शों की दकियानूसी बातें स्वीकार ही नहीं है। वो अपने व्यक्तित्व को सभी सीमाओं से अलग देखता है इसलिए ही अपने आप को छोटी-बड़ी सभी सीमाओं से मुक्त रखना चाहता है । वो अपनी छवि को नया रूप देना चाहता है । उसे किसी भी सीमा की