महानायक शिवाजी - सोनाली मिश्रा

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कई बार जब हम किसी चीज़ को शिद्दत से चाहते हैं और उसे हर हाल में...कैसे भी कर के पाना चाहते हैं एवं अपने अथक प्रयासों एवं दृढ़ निश्चय के बल पर उसे पा भी लेते हैं या पाने के इस हद तक करीब पहुँच जाते हैं कि हमें, हमारी जीत एकदम सुनिश्चित...सुरक्षित एवं भरोसेमंद लगने लगती है। तभी अचानक ना जाने ऐसा क्या होता है कि जीत की सारी खुशी...उसका सारा वेग..सारा हर्षोल्लास...सारा उन्माद , सब का सब एकाएक हवा हो...जाने कैसे काफूर होने लगता है। अपनी उस उपलब्धि पर हमारे मन में कोई उमंग..कोई आस..कोई उल्लास..कोई तरंग तक