सुलझे...अनसुलझे संघर्ष ------- यह बात सन २००५ की बात रही होगी जब मैं जोधपुर के रेलवे स्टेशन से जोधपुर-हावड़ा ट्रेन में अपनी बेटियों प्राची और प्रज्ञा को अपने साथ लेकर आगरा की यात्रा पर निकली थी| अपना सामान बर्थ के नीचे अच्छे से लगा कर मैं बेटियों के साथ बैठी ही थी कि उसी कम्पार्टमेंट में एक और महिला अपनी बेटियों के साथ आई| चूँकि उनकी बेटियां बड़ी थी तो दोनों बेटियों ने अपनी माँ को आराम से बैठने को कहा और दोनों ही ख़ुद सामान जमा कर अपनी माँ के आसपास बैठ गई| थोड़ा ही वक़्त गुज़रा होगा कि