सुलझे...अनसुलझे मेरी ज़िंदगी ----------------- आज जब सवेरे-सवेरे मेरे स्कूल की मित्र वृन्दा का बरसों बाद फ़ोन आया तो अनायास ही मेरे चेहरे पर, एक तरफ तो मुस्कराहट की लहर दौड़ गई और दूसरी तरफ़ पांच साल पहले उसके साथ हुए हादसे की कुछ-कुछ अधूरी-सी दुखद यादें भी साथ-साथ ही हरी हो गई| पांच साल पहले जब अनायास ही एक दिन मुझे, हमारी किसी दूसरी स्कूल मित्र से पता चला कि वृन्दा की पच्चीस वर्षीया बेटी पंखुरी की, एक एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई है| हम सभी मित्रों के लिए यह ख़बर बहुत झंझकोरने वाली थी, क्यों कि हम सभी के