- प्रेम करोड़ी'प्रिया ओ प्रिया, देखो तो कौन है बाहर।’ चाय के संग अखबार को पीते हुए सुधांशु ने कहा।'देखती हूं।’ कुछ झुंझलाते हुए प्रिया रसोई से बाहर आई और मन ही मन बुदबुदाने लगी, 'कौन है न जाने, डोरबेल लगी हुई है, फिर भी दरवाजा पीटे जा रहा है।’दरवाजा खोला तो देखा सामने एक नाटा सा आदमी धोती-कुर्ता पहने खड़ा है, अकेला नहीं है, उसके साथ देसी ठर्रे की गंध भी जैसे पूरे घर में दाखिल होने को उतावली लग रही है।प्रिया ने कुछ अजीब सा मुंह बनाते हुए पूछा, 'बोलो क्या काम है?’'अरे भाभाजी प्रणाम, मैं करोड़ीलाल हूं। भाईसाहब