सीमारेखा

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हर व्यक्ति की ज़िंदगी में एक मकसद होता है. बिना मकसद के ज़िन्दगी बेमानी है. ज़िन्दगी को जीना और उसे काटना दोनों अलग बातें हैं. ज़िन्दगी जब बोझ लगने लगे तो उसे अधिक देर तक ढोया नहीं जा सकता, किन्तु यह बोझ यूँ ही कहीं फेंका भी तो नहीं जा सकता. लेकिन ज़िन्दगी बोझ क्यों लगने लगती है..? अपनी ही साँसों का हिसाब रखना कितना मुश्किल काम है. सपनों की दुनिया कितनी अच्छी होती है. जब हकीकत की चट्टान ख्वाबों और ख्वाहिशों की राह में रोड़ा बन जाती है, तब या तो ख्वाब टूटता है या ख्वाहिशें मचलती हैं और