7. ट्रैन शायद किसी बड़े जंक्शन पर रुकी थी। किसना की अंतड़ियां मारे भूख और प्यास के सिकुड़ गई थी। जेब में पैसे तो थे, पर उतरने की हिम्मत और ताकत नहीं थी उसकी भीतर। बगल में बैठे सहयात्री से कहा की उसकी जगह रोक के रखे और अपना रुमाल जगह बिछाकर नीचे उतर गया। बैठ-बैठ कमर और गर्दन अकड़ गई थी उसकी। सामने ही प्याऊ नजर आई तो ओक लगाकर जन्मों के प्यासे की तरह भरपेट पानी पीता ही चला गया। नजदीक के एक स्टॉल में कढ़ाई पर खोलते तेल पर तैराती फूली-फूली पुरियों की सौंधी महक ने पेट