सुलझे...अनसुलझे - 18

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सुलझे...अनसुलझे भावनात्मक स्पर्श ------------------ आज मेरी मुलाक़ात एक अरसे बाद अपनी बचपन की मित्र लेखा से हुई। सुना था कि उसकी शादी एक बहुत ही धनाढ्य परिवार में हुई थी। उसके विवाह का निमंत्रण मुझे मिला था| पर मेरा विवाह उससे पहले हो जाने से सुसराल में अपनी ज़िम्मेदारियों की वज़ह से मैं उसके विवाह में नही जा सकी थी। फिर अपने-अपने परिवारों में व्यस्तताओं के चलते एक गैप हो गया था| अचानक ही आज एयरपोर्ट पर उसको देख मुझे बेहद अच्छा लगा। ‘कैसी हो विभा....तुम कहाँ जा रही हो?’.. लेखा ने पूछा । ‘लेखा! मेरे काव्य-संग्रह का विमोचन था|