टूट गई अंधविश्वास की छड़ी...

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उसका क्या नाम था, कोई नहीं जानता। उसकी बेटी का नाम निर्मला था, यह बात पूरे गांव को पता थी। तभी तो पूरा फर्दपुर उसे निर्मलिया माय कहकर पुकारता था। बिहार के गांवों में नाम के साथ या, आ, बा लगाकर तथा किसी स्त्री को उसके बेटा या बेटी के नाम के साथ जोड़कर पुकारने का रिवाज आज भी है। निर्मलिया माय के पिता और ससुर तो मरे हुए पशुओं की खाल उतारने का काम करते थे, लेकिन उसका पति पुश्तैनी काम छोड़कर दूसरों के खेतों पर मजदूरी करता था। आज एकाएक गांव के ज्यादातर लोग निर्मलिया माय के घर