4. पूर्णिमा का चांद अपने यौवन की पामीर पर था और समस्त अवनि एवं व्योम उसकी दूधिया आभा से नहा उठे थे, किंतु अपार रूप को स्वामिनी, नववधू के समक्ष चंद्रमा भी स्वयं को हीन महसूस करता दिखाई दे रहा था। फाल्गुनी की प्रतीक्षारत उनींदीं पलकें पिया दरस को व्याकुल थी। तभी किसी की पदचाप से उसके हृदय की धड़कनें बढ़ गईं। धीमे-से पलकों को उठाया तो स्वामी के गौर युगल चरणों के दर्शन से धन्य हो उठी। लजाते हुए सेज से उठकर उसने श्रद्धा सहित पति की चरण रज को अपने मस्तक से लगाया । स्मारक के हाथ उसे