जिंदगी सिर्फ शीर्षक बदलती रही॥

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के बी एल पांडेय के गीत है कथानक सभी का वही दुख भरा जिंदगी सिर्फ शीर्षक बदलती रही॥ जिंदगी ज्यों किसी कर्ज के पत्र पर कांपती उंगलियों के विवश दस्तखत, सांस भर भर चुकाती रहीं पीढ़ियां ऋण नहीं हो सका पर तनिक भी विगत। जिंदगी ज्यों लगी ओठ पर बंदिशें चाह भीतर उमड़ती मचलती रही ॥ है कथानक सभी का वही दुख भरा,जिंदगी सिर्फ शीर्षक बदलती रही॥ तेज आलाप के बीच में टूटती खोखले कंठ की तान सी जिंदगी, लग सका जो न हिलते हुए लक्ष्य पर उस बहकते हुए वाण सी जिंदगी। हो चुका खत्म संगीत महफिल उठी