'बहु चाय पियोगी, सुबह से पूजा पाठ में व्यस्त हो, कही तबियत ना बिगड़ जाए' विमला ताई चाय का कप मेरे हाथों में थमाते हुए बोली. मैं मौन उदास बिना कुछ बोले चाय ले कर अपने कमरे में आ गयी.'निर्वि.. जय की आवाज़ सुन मैं चौंक कर उठ गयी.'जय..तुम..तुम कब आये? मैंने अचकचाते हुए पूछा.'निर्वि, मैं तो यही था..तुम्हारे पास, सदैव!जय ने कहा'झूठ ना बोलो..तुम मेरी आंखों के सामने गए, तब तुम्हें अपनी निर्वि की याद नही आयी, आज दो बरस बाद आ कर बोल रहे हो.. मैं यही था'.मैंने गुस्सा दिखाते हुए कहा.'निर्वि, तुम्हें यही एहसास दिलाने मुझे आना पड़ा,