समझौता नहीं समर्पण

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समझौता नहीं समर्पण   “ रिश्ते बनते तो प्यार से है लेकिन निभाए समझौते से ही जाते है. जो जितना ज्यादा समझौता करेगा उसका जीवन और रिश्ता उतना ही सुखी दिखेगा लोगो को. “ मनस्वी ने खिड़की से बाहर देखते हुए कहा. बाहर घाना कोहरा छाया हुआ था. बुँदे बरस रही थी दिलो की उदासी मौसम पर छाई थी और मौसम की उदासी दिलो पर. बादलों से पानी की नहीं दर्द की बूंदे बरस रही थी. अन्वी ने शौल को अपने कंधो पर कसकर लपेट लिया. “ तो क्या दीदी रिश्तो में प्यार कभी बचता ही नहीं है “? “