कहानी मृगचर्म विपिन के पिता रामनाथ वर्मा ऑफिस से लौटते समय एक कलेन्डर लेकर आये। विपिन ने चित्र देखने की उत्सुकता में वह उनके हाथ से ले लिया। उसे खोला। देखा-चित्र में व्याघ्र-चर्म पर शंकर जी समाधिस्थ बैठे हैं। उसे याद हो आई बचपनकी जब पिताजी के दैनिक पूजा-पाठ में उपयोग आने वाले व्याघ्र-चर्म बिछाकर वह भी उनकी तरह उस पर पालथी मारकर पूजा करने बैठ गया था। यह देखकर रामनाथ ने पत्नी विजया से खिलखिलाकर हंसते हुए कहा था-’देखा! हमारा लाङला कैसी समाधी लगाए बैठा है।’ उसे किसीकी नजर न लग जाये इसलिये वह