12. घर पहुंचा तो वह खुद को जिस्मी तौर पर ही नहीं ज़हनी तौर पर भी थका हुआ महसूस कर रहा था। उसने अपना कमरा खोला और कुर्सी पर निढाल सा बैठ गया। आज जो कुछ भी उसने देखा-सुना था, उससे वह परेशान हो गया था। कहीं एक भी तो ऐसा वाकया, ऐसी बात उसे चाह कर भी नजर नहीं आई थी जो हिंदुस्तान के बारे में उसकी सोच या उसके मन में बैठी तस्वीर को बल देती। उसने खुद को समझाया था, हो सकता है, मुंबई में ऐसे मामले न हों, दूसरे शहरों में मुसलमानों पर अत्याचार हो रहे