बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 7

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भाग - ७ वही ज़ाहिदा-रियाज़, फिर अपने कपड़ों के साथ जंग । उतार-उतार कर उन्हें दीवारों पर रात भर के लिए दे मारना। फिर अपने ही तन बदन को देख-देख कर इतराना। और आखिर में मायूसी के दरिया में डूब कर खूब आंसू बहाना कि, हाय रे मेरा मुकद्दर। मेरे संग ऐसा क्यों कर रहा है? और जमीन पर ही पड़े-पड़े सो जाना रात भर के लिए। और चिकनकारी, वह भी मेरी तरह मायूस रात भर जमीन पर पड़ी रहती। सवेरा होता तो दीवारों से टकरा-टकरा कर जख्मी पड़े, अपने कपड़ों को फिर उठाती। रात के अपने गुनाहों के लिए