सुलझे...अनसुलझे प्यार और डांट ------------------ बहुत साल पहले हमने अपने घर में ही, एक कमरे का सेट मरीज़ों को देखने के लिए बनवाया हुआ था| ताकि समयानुसार उसका उपयोग कर सके। प्रैक्टिस के शुरुवाती दौर में वहां मरीज़ देखे| पर जैसे-जैसे समय ग़ुज़रा, मुख्य क्लिनिक पर ही काफ़ी समय निकल जाता था| घर आते-आते बहुत देरी हो जाती थी| फिर हमने घर की क्लीनिक को बंद करने का निर्णय लिया| साथ ही उसको किसी छोटे परिवार को किराए पर देने का भी निर्णय लिया| ताकि घर में थोड़ी चहलपहल रहे। तभी किसी दुकान में कार्यरत दिनेश और उसकी पत्नी दिव्या