चार्ल्स डार्विन की आत्मकथा अनुवाद एवं प्रस्तुति: सूरज प्रकाश और के पी तिवारी (17) III चार्ल्स डार्विन का धर्म मेरे पिता ने अपने प्रकाशित लेखों में धर्म के बारे में एक मौन ही साधे रखा। धर्म के बारे में उन्होंने जो थोड़ा-बहुत लिखा भी तो वह प्रकाशन के प्रयोजन से कभी नहीं। मुझे लगता है कि कई कारणों से उन्होंने यह चुप्पी साधी थी। उनका मानना था कि इन्सान के लिए उसका धर्म निहायत ही व्यक्तिगत मसला होता है और इसकी चिन्ता भी उसके अपने लिए ही होती है। सन 1879 में लिखे एक खत में उन्होंने इसी बात की