"पश्चाताप " यह रचना मैने प्रतिलिपि पर वेवसीरीज के तौर पर लिखी थी जिसे अब बिना परिवर्तित करे मै उपन्यास के रूप मे मातृभारती पर देने जा रही हूँ | प्रतिलिपि पर मैने इसे दस भागो मे प्रस्तुत किया था जो कि, पूर्णिमा का शशिकान्त के घर छोड़ने तक ही है | आगे का भाग मै मातृभारती पर देने जा रही हूँ | मुझे पूर्ण विश्वास है कि इच्छा की तरह ही आपलोग पूर्णिमा को भी उतना ही प्रेम व सम्मान देंगे | धन्यवाद रूचि दीक्षित "अरे सुन रही है! ले जा इसे ! बिल्कुल भी ध्यान नही रखती बेटे का "|